कितनी तारीखों का धुआँ - आँच - और बुझान है मेरी आँखों में जमा हैं कुछ तारीखें मेरी आयु में सूखे पत्तों की तरह।
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ